Kashmir Files: जब सिसकियों से गूंज उठा था पूरा हॉल
द कश्मीर फाइल्स: कश्मीरी पंडितों की सिसकियों से गूंज उठा था पूरा हॉल, यूं लगा जख्मों से आज भी रिस रहा लहू
( PUBLISHED BY – SEEMA UPADHYAY )
कभी सिसकियां, कभी जोर से रोना… और कभी तालियां… दरअसल 72 एमएम की स्क्रीन पर जब ‘द कश्मीर फाइल्स’ फिल्म का एक-एक पन्ना खुलता है तो लगता है कि दशकों पुराने जख्म भर रहे हैं. खून आज भी खौल रहा है… और जब इस फिल्म को उन कश्मीरी पंडितों के साथ देखा जाए जो असल में इस नरसंहार और अत्याचार से रूबरू हुए थे तो लगता है कि भारत की इस मिट्टी में कश्मीरी पंडितों पर कितना जुल्म ढाया गया. . कैसे उन्हें अपने ही घर से निकाल दिया गया।
सिर्फ कहानी नहीं है ‘द कश्मीर फाइल्स’
अगर आपने अब तक ‘द कश्मीर फाइल्स’ नहीं देखी है तो समझ लीजिए कि ये कोई कहानी नहीं बल्कि पिछले 32 सालों से कश्मीरी पंडितों के दिलों में दबी एक दर्दनाक कहानी है. यह भारत के कश्मीर में हुए भीषण नरसंहार के कारण हुए सबसे बड़े पलायन की कहानी है। तर्क और यथार्थ की पटकथा कभी नहीं लिखी जाती। अपने ही घरों से बेदखल किए गए कश्मीरी पंडितों के साथ बैठकर उनकी कहानी को बड़े पर्दे पर प्रकट होते देखना किसी भावनात्मक यात्रा से कम नहीं था।
दिल को छू रही थीं कश्मीरी पंडितों की भावनाएं
आज एक बार फिर इस फिल्म पर विवाद खड़ा हो गया है। इजरायल के फिल्म मेकर ने कश्मीरी पंडितों के नरसंहार की कहानी को भद्दी फिल्म बताया है. ऐसे में हम आपके साथ उस समय का अनुभव साझा कर रहे हैं, जब हमने कश्मीरी पंडितों के साथ बैठकर उनके अपने 32 साल पुराने दर्द को महसूस किया था. हालांकि अंधेरे में सिनेमा हॉल के अंदर किसी का चेहरा नजर नहीं आ रहा था, लेकिन उनकी भावनाएं सीधे दिल को छू रही थीं.
किसी भी सीन में जैसे ही आतंक का घिनौना चेहरा नजर आता, पूरा सिनेमा हॉल कश्मीरी पंडितों की सिसकियों से गूंज उठता। पिछले 32 साल से इंसाफ की लड़ाई लड़ रहे कश्मीरी पंडित इंसाफ की कोई झलक देखते ही सिनेमा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठता है. फिल्म के एक-एक दृश्य, नरसंहार और अत्याचार को देखकर कश्मीरी पंडितों की युवा पीढ़ी चीख पड़ती। वहीं, कुछ के दिल में दबा दर्द इस कदर निकला कि वे अपने पुरखों के साथ हुए अन्याय को देखने की हिम्मत नहीं जुटा पाए और थिएटर से बाहर चले गए.
…और फूट-फूटकर रोने लगी कश्मीरी महिला
फिल्म के अंत तक हर कश्मीरी पंडित के दिल में 32 साल के जख्म ताजा हो गए। सभी नम आंखों के साथ थियेटर से बाहर निकले। अपने पूर्वजों के साथ हुए अन्याय को देखकर एक कश्मीरी पंडित महिला फूट-फूट कर रोने लगी। उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि आतंकियों ने मेरे ससुर की हत्या कर उन्हें पेड़ से लटका दिया है. उसके शरीर पर कई छोटे-छोटे छेद किए गए थे। उसे पकड़वाने वाला कोई और नहीं बल्कि उसका अपना नौकर था। वह रात का खाना खा रहा था। वह पहला ग्रास ले ही चुका था कि नौकर उसे बुलाने आया। वह बाहर चला गया और कभी वापस नहीं आया। मेरे पति उस समय बहुत छोटे थे। इतनी कम उम्र में उनके सिर से मां और पिता दोनों का साया उठ गया था।
‘हमारी कहानी झुठलाने वालों के लिए करारा जवाब’
एक और कश्मीरी पंडित रीता पीर थिएटर से बाहर आकर जश्न मनाती नजर आईं. उन्होंने कहा कि इस फिल्म ने उनके घाव खोल दिए, लेकिन उन्हें खुशी है कि आज उनकी कहानी पूरी दुनिया के सामने आ गई है. 32 साल तक कश्मीरी पंडितों को भगोड़ा कहने वालों के मुंह पर यह फिल्म तमाचा है। हमने हथियार क्यों नहीं उठाए? हमने इसके खिलाफ आवाज क्यों नहीं उठाई? ऐसे सवाल पूछकर हमारी कहानी को नकारने वालों को यह फिल्म करारा जवाब है।