तारो सिंदिक की कविता- ‘मैंने एक सांझ लिखी, तुम चांद बन मेरे आसमां में खिल गईं’
आकाश मिश्रा ✍️
नई दिल्ली: तारो सिंदिक हिंदी के वह युवा कवि हैं जो अरुणाचल प्रदेश में हिंदी की अलख जगाए हुए हैं. उनके पहले कविता संग्रह ‘अक्षरों की विनती’ को ‘साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार’ (Sahitya Akademy Yuva Puruskaar) से सम्मानित किया जा चुका है.
तारो को काव्य-रचना अतिरिक्त गीत-संगीत, चित्रकला, लोक-साहित्य एवं सांस्कृतिक गतिविधियों में विशेष रुचि है. प्रस्तुत हैं उनकी चुनिंदा कविताएं-
विचारधारा
मेरे जेहन में
एक गली है
लम्बी-चौड़ी….असीम
जहां से गुजरती
उछलती-कूदती
विचारों की
दीर्घ पंक्ति;
मैं समझ नहीं पाता
जुलूस का हिस्सा बनूं
कि खड़ा रहूं
हाशिए पे –
कारवां गुजरने के
इन्तजार में।
परन्तु …
उसी भीड़ से
छनकर आती
कुछ जानी पहचानी शक्लें
मेरे हृदय के
बहुत करीब सी;
मैं उन्हीं चन्द
अपनों के संग
निकल पड़ता हूं
अनन्त यात्रा को
उसी अनन्त गली में
छोटा सा समूह बनाकर
मैं हिंदी और मातृभाषा
मुझे
हिंदी से प्रेम है!
अरे नहीं!
इसका यह मतलब नहीं
कि मैं अपनी
पुरखों की भाषा
कहीं पीछे छोड़ आया;
मेरे हिंदी-प्रेम पर
काहे तुम
नाक-मुहं सिकोड़ते
चेहरा बिगाड़ते?
तुम भी तो
अभिव्यक्ति के
हर सफरनामे में
हिंदी की बाहें थामे
संभालते हो
अपनी लड़खड़ाती जुबान।
हां जी
मुझे
हिंदी से प्रेम है
मगर इसका यह मतलब नहीं
कि मैं अपनी
पुरखों की भाषा
कहीं पीछे छोड़ आया।
मैंने तो
नौसिखिया बालक सा
दोनों के
साथ चलना सीखा है
और अब मैं
दोनों के साथ
चल रहा हूं।
प्रणय तुम्हारा
मैंने एक सांझ लिखी
तुम चांद बन
मेरे आसमां में खिल गईं
मैंने एक कल्पना लिखी
तुम मेरी रचनाओं सी
यथार्थ पंक्तियों में सज गईं
मैंने एक सफर लिखा
तेरे कदमों के निशान
राह में अंकित होती गए
मैंने एक समर लिखा
तुम विरांगिनी बन
हर धूप-छांव से भिड़ गई
मैंने एक समर्पण लिखा
तुम निर्भ्रांत-निष्कपट
फूलों की चादर सी बिछ गईं
मैंने एक जीवन लिखा
प्रणय तुम्हारा
सांस बन मुझे जिलाती गई।