छत्तीसगढ़स्वास्थ्य

अस्पताल है या कत्ल खाना..?

रायपुर। जिंदगी कुछ यूं गुजारी जा रही है… जैसे एक जंग हारी जा रही है… जहां पर पहले से जख्मों के थे निशान… फिर से वहीं पर चोट मारी जा रही है… छत्तीसगढ़ में प्राइवेट अस्पतालों एवं नॢसंगहोम्स में एक बार मरीज को अस्पताल में एडमिट होने के बाद छोटी सी छोटी बीमारी में लाखों रुपये इलाज के नाम पर खर्च करना, दर्जनों प्रकार के टेस्ट कराना, डॉक्टरों के जाल में फंसकर परिजनों की विवशता एवं मजबूरी बन गई है। किसी की मौत पर तमाम वे लोग… जिन्हें आवाज उठाने की आजादी है… कार्रवाई करने की जिम्मेदारी है… जिंदगी बचाने की ताकत ईश्वर ने दी है… वहीं अगर अपने कार्य से विमुख हो जाए तो… इंसान कहां जाए.?

जमीनी भगवान कहे जाने वाले अस्पतालों में अगर…लापरवाही का आलम सर चढ़कर बोलने लगे तो.. मरीजों का ऊपर वाले भगवान के पास जाना तय है… और इसका उदाहरण छत्तीसगढ़ की शांत धरा पर… कसाई जैसा व्यवहार करने वाले अस्पतालों में देखा जा सकता है… दो अस्पतालों की गहरी साजिश में… एक मासूम महिला की मौत से… भले ही उसके घर वालों का दिल दहल गया हो… किंतु उस मृत महिला की लाश पर.. रोटी सेकने वालों ने उसे अवश्य भुना लिया… वरना दोनों अस्पतालों के षड्यंत्र में हत्या कहो या लापरवाही पूर्वक.. किसी की जान लेने की खबर.. बताने जैसी अनेकों प्रेस आईडी लगने के बाद भी… मामले का दब जाना कम आश्चर्य नहीं है…हम बात कर रहे हैं जांजगीर-चांपा के ज़ुनाडीह चोरभाटा निवासी बिंदिया कश्यप की… जिसकी मौत के कारण दो-दो अस्पताल बन गए.. लेकिन मजे की बात यह है कि.. दोनों अस्पताल प्रबंधन यह मानने को तैयार नहीं कि.. बिंदिया कश्यप की दर्दनाक मौत.. हमारी लापरवाही से हुई है.. उधर जांजगीर-चांपा के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी मनोज बर्मन.. जिन्हें इस लापरवाही की जांच करना था.. प्रतिवेदन आने के बाद ही कुछ कहा जा सकता है.. कहकर अपना पिंड छुड़ाने का प्रयास किया था.. जो आज दिनांक 3 सितंबर 2025 को मोबाइल से संपर्क कर… अब तक क्या कार्रवाई हुई…प्रश्न करने पर जवाब था.. मामला पुराना हो गया.. मोबाइल पर जानकारी नहीं दूंगा… सामने आकर पूछिए…कहकर अपना पल्ला ही झाड़ लिया…

मामले की तह पर जाएं तो.. परत दर परत उखड़ते तथ्य का सत्य.. निर्मल जल की तरह साफ है.. किंतु उस निर्मल जल में अपनी गंदगी डालकर.. जहां दोनों अस्पताल प्रबंधन ने.. मामले को दबाने का कार्य किया है.. वहीं उस अस्पताल प्रबंधन पर कार्यवाही करने की जिम्मेदारी निभाने वाले… मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी ने भी अपनी भूमिका पर कलंक का टीका अवश्य लगा डाला… अब इतने गंभीर मामले में जिले के मुखिया कहे जाने वाले जिलाधीश एवं प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल कितना इत्तेफाक रखते हैं… उन्होंने इस मामले का संज्ञान लेकर क्या कार्रवाई की…यक्ष प्रश्न है… जांजगीर-चांपा जिले के जूनाडीह चौराभाटा निवासी बिंदिया कश्यप को जांजगीर चांपा स्थित दादी सती अस्पताल में प्रसव हेतु भर्ती किया गया था…जैसा कि आज के हालात में नॉर्मल डिलीवरी का प्रचलन समाप्त हो चुका है… बिंदिया कश्यप का भी ऑपरेशन किया गया… जुड़वा बच्चों की प्राप्ति पर… पूरा कश्यप परिवार बेहद प्रसन्न था.. किंतु उनकी प्रसन्नता पर उस वक्त पानी फिर गया.. जब उसमें एक शिशु का निधन हो गया.. और बिंदिया कश्यप की दर्दनाक मौत .. मौत का कारण भी अजीब ओ गरीब था.. दादी सती हॉस्पिटल में बिंदिया कश्यप का ऑपरेशन हुआ.. जुड़वा बच्चे हुए..चीर फाड़ के बाद पेट की सिलाई हो गई… कुछ दिन बाद पेट में दर्द उठा.. दादी सती अस्पताल जांजगीर चांपा में पुन: भर्ती कराया गया.. लेकिन जांजगीर चांपा के दादी सती अस्पताल से बिंदिया कश्यप को.. बिलासपुर स्थित लाइफ केयर अस्पताल रीफऱ कर दिया गया… लाइफ केयर अस्पताल में बिंदिया का पुन: ऑपरेशन किया गया… जिसमें बिंदिया कश्यप के पेट से कपड़ा निकालते स्पष्ट देखा जा सकता है.. किंतु इतना स्पष्ट दिखने के बाद भी.. दोनों अस्पताल प्रबंधन ने कपड़ा डालने और कपड़ा निकालने की बात से इनकार कर दिया..जमीनी भगवान इंसान से जब दानव बन जाते हैं.. उस अवस्था में.. आम इंसान कहां गुहार लगाएगा…? समझ से परे है…उधर दादी सती अस्पताल के संचालक डॉक्टर महेंद्र जायसवाल ने… जहां कपड़ा डालने की बात को सिरे से नकार दिया… वही बिंदिया की मौत कैसे हुई..?. इसकी जानकारी लाइफ केयर अस्पताल बिलासपुर से लेने की बात कर डाली… जबकि लाइफ केयर हॉस्पिटल के संचालक डॉक्टर रामकृष्ण कश्यप ने स्वीकार किया था कि… हां कपड़ा था.. डॉ.राम कृष्ण कश्यप ने किस हालात में उक्त उद्गार पेश किये थे…वे ही जाने..किंतु लाइफ केयर हॉस्पिटल में बिंदिया का ऑपरेशन करने वाले डॉक्टर वरुण सिंह ने… साफ इनकार कर दिया कि.. कोई कपड़ा था…अपितु मवाद एवं पोट्टी की वजह से इंफेक्शन हो गया था… अपना दामन बचाने का प्रयास अवश्य किया.. बदलते बयान के बावजूद… सच्चाई सामने दिख रही है… किंतु ना तो इसकी गूंज..शासन में बैठे पक्ष विपक्ष के नेताओं ने सुनी.. ना ही सत्ता में बैठे सत्ताधारियों ने.. और न ही शासन प्रशासन में बैठे उच्च अधिकारियों ने ही सुनी… जिसमें लाशों के ढेर पर अपनी रोटी सेकते… अट्टालिकाओ पर खड़े होकर अट्टहास लगाते चेहरे स्पष्ट नजर आते हैं… चर्चा तो यह भी है कि बिंदिया के पति का भाई उस ग्राम पंचायत ज़ुनाडीह चौराभाटा का सरपंच होने के बाद भी… मामले की सच्चाई क्यों दब गई…? क्या इसके पीछे कोई प्रलोभन था या सरपंच के बेटे का लाइफ केयर हॉस्पिटल में काम करना… जबकि बिंदिया की मां बसंत बाई…अपनी बिटिया की मौत से द्रवित होकर वह बात कह रही है.. जो उसे उसकी बिटिया बिंदिया ने ही बताया कि… पेट से कपड़ा निकला है.. वहीं बिंदिया का भाई बजरंग कश्यप अस्पताल प्रबंधन पर कार्रवाई करने की बात स्पष्ट रूप से कह रहा है… अब सवाल उठता है कि. ऐसे कर्मकांड करने वालों पर कार्यवाही करने वाले… मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी ने..अपना दायित्व क्या सही निभाया..?. क्या जांजगीर चांपा एवं बिलासपुर के जिलाधीश पर सवाल नहीं उठता..?क्या स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल का दिल नहीं पसीजा.. क्या गरीबों पर होने वाले अत्याचार पर संवेदनशील भाजपा सरकार…इतनी कठोर हो चुकी है कि.. मर्माहत करने वाली घटना के बावजूद.. मूक दर्शक हो गई…? क्या मेडिकल बोर्ड इस तरह की होने वाली घटना पर… संबंधित अस्पतालों का लाइसेंस रद्द करने का मादा रखता है… ? क्या पुलिस प्रशासन की जिम्मेदारी रिपोर्ट के आधार पर ही कार्रवाई करना है..?. सवाल बहुत है…? मामला गंभीर है.?. षड्यंत्र के जाल में बेचारा गरीब लाचार है.. शासन प्रशासन मौन है.. मानवाधिकार का डंडा ठंडा पढ़ चुका है… चौथा स्तंभ हिल चुका है..गरीब की मौत बिक चुकी…आम इंसान का जमीर मर चुका है…बेचारी बिंदिया अपने नवजात शिशु के साथ चल बसी है.. नक्कार खाने में तूती की आवाज सिर्फ गूंजते ही रह गई… किसी ने सच ही कहा है कि.. लकड़ी के कीड़े पूरी कुर्सी खा जाते हैं..किंतु कुर्सी के कीड़े पूरा इंसान… फिर भी मेरा देश महान…

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