
रंगभरी एकादशी को लेकर ऐसी पौराणिक मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव ने माता पार्वती का गौना करवाने के बाद उन्हें पहली बार काशी (वाराणसी) लाकर अबीर-गुलाल से उनका स्वागत किया था। यह एकादशी फाल्गुन शुक्ल पक्ष की होती है और इसे शिव भक्तों के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।
रंगभरी एकादशी का महत्व
- शिव-पार्वती का पुनर्मिलन – इस दिन भगवान शिव ने देवी पार्वती को अपनी अर्धांगिनी के रूप में पूरी तरह से स्वीकार कर लिया और काशी लाकर उनके साथ होली खेली।
- होली का प्रारंभ – इस दिन से काशी में होली की शुरुआत मानी जाती है, जहां शिव भक्त भगवान को गुलाल और अबीर अर्पित करते हैं।
- भक्तों के लिए विशेष दिन – काशी में बाबा विश्वनाथ के मंदिर में विशेष श्रृंगार और पूजा होती है, और भक्तगण शिव-पार्वती के संग होली खेलने के लिए उमड़ते हैं।
रंगभरी एकादशी की पूजा विधि
- प्रातः स्नान कर व्रत का संकल्प लें।
- भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्ति का गंगा जल से अभिषेक करें।
- फल, फूल, धूप, दीप, नैवेद्य आदि अर्पित करें।
- विशेष रूप से गुलाल और अबीर अर्पित कर भगवान शिव-पार्वती के संग होली खेलें।
- शिव मंत्रों और विष्णु मंत्रों का जाप करें, क्योंकि एकादशी तिथि विष्णु जी को समर्पित होती है।
यह पर्व शिव-पार्वती की दिव्य प्रेम गाथा का प्रतीक है और भक्तों को सुख-समृद्धि प्रदान करने वाला माना जाता है।