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Rangbhari Ekadashi : शिवशक्ति के आगमन का उत्सव

रंगभरी एकादशी को लेकर ऐसी पौराणिक मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव ने माता पार्वती का गौना करवाने के बाद उन्हें पहली बार काशी (वाराणसी) लाकर अबीर-गुलाल से उनका स्वागत किया था। यह एकादशी फाल्गुन शुक्ल पक्ष की होती है और इसे शिव भक्तों के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।

रंगभरी एकादशी का महत्व

  1. शिव-पार्वती का पुनर्मिलन – इस दिन भगवान शिव ने देवी पार्वती को अपनी अर्धांगिनी के रूप में पूरी तरह से स्वीकार कर लिया और काशी लाकर उनके साथ होली खेली।
  2. होली का प्रारंभ – इस दिन से काशी में होली की शुरुआत मानी जाती है, जहां शिव भक्त भगवान को गुलाल और अबीर अर्पित करते हैं।
  3. भक्तों के लिए विशेष दिन – काशी में बाबा विश्वनाथ के मंदिर में विशेष श्रृंगार और पूजा होती है, और भक्तगण शिव-पार्वती के संग होली खेलने के लिए उमड़ते हैं।

रंगभरी एकादशी की पूजा विधि

  • प्रातः स्नान कर व्रत का संकल्प लें।
  • भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्ति का गंगा जल से अभिषेक करें।
  • फल, फूल, धूप, दीप, नैवेद्य आदि अर्पित करें।
  • विशेष रूप से गुलाल और अबीर अर्पित कर भगवान शिव-पार्वती के संग होली खेलें।
  • शिव मंत्रों और विष्णु मंत्रों का जाप करें, क्योंकि एकादशी तिथि विष्णु जी को समर्पित होती है।

यह पर्व शिव-पार्वती की दिव्य प्रेम गाथा का प्रतीक है और भक्तों को सुख-समृद्धि प्रदान करने वाला माना जाता है।

Buland Hindustan

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