कुष्मांडा माता के पूजन का महत्व हिन्दू धर्म में अत्यधिक माना जाता है। कुष्मांडा माता का नाम संस्कृत में ‘कुष्म’ और ‘अम्ब’ से मिलकर बना है, जिसका अर्थ होता है ‘फलों की अग्रणी मां’। कुष्मांडा माता को चौथे दिन का रूप माना जाता है, और वे चन्द्रमा के एक चौथाई के बराबर की हैं। इन्हें चांद के सवारी वाहन पर बैठे हुए दिखाया जाता है।
कुष्मांडा माता की कथा के अनुसार, जब ब्रह्मा, विष्णु और शिव ने मां दुर्गा की शक्ति के रूप में एकत्र होकर एक बिंदु को जन्म दिया, तो उस बिंदु के फूलने पर एक दिव्य महिला रूप में प्रकट हुईं, और वही मां कुष्मांडा बन गईं। मां कुष्मांडा की खास पहचान उनके पास महाभाग का चांद रहता है, जिसके कारण वे चांद के रूप में पूजी जाती हैं।
इस रूप में, मां कुष्मांडा के चरणों की पूजा करने से भक्तों को सुख, समृद्धि, सफलता और स्वास्थ्य मिलता है। वे सबकी इच्छाओं को पूरा करने वाली माता मानी जाती हैं, और उनके पूजन से संसार में सुख और शांति का प्राप्त होता है।
कुष्मांडा माता का उपासना का समय नवरात्रि के चौथे दिन को मनाया जाता है, जिसे चूठे दिन के रूप में भी जाना जाता है। इस दिन भक्त आराधना करते हैं और मां कुष्मांडा की कृपा की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करते हैं।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मां कुष्मांडा को अष्टभुजा देवी के रूप में पूजा जाता है। उनके हाथों में कमंडल, कमल, अमृतपूर्ण कलश, चक्र, गदा, धनुष, बाण और माला है। मां कुष्मांडा बाघ की सवारी करती हैं और माता को हरा रंग बहुत प्रिय है।