मानकेश्वरी देवी मंदिर में 40 बकरों की बलि और खून पीने की परंपरा

रायगढ़। छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में शरद पूर्णिमा के अवसर पर मानकेश्वरी देवी मंदिर में बैगा ने बकरों की बलि देकर उनका खून पीया। ग्रामीणों ने इस दिन मानकेश्वरी देवी की पूजा-अर्चना करते हुए कुल 40 बकरों की बलि दी। यह परंपरा करीब 500 साल से चली आ रही है। बलि देने और खून पीने का वीडियो भी सामने आया है।
मानकेश्वरी देवी के भक्तों के अनुसार, इतने खून पीने के बाद भी बैगा के शरीर में कोई साइड इफेक्ट नहीं होता। भक्तों का मानना है कि इस दिन देवी का वास बैगा के शरीर में हो जाता है। बलि पूजा के बाद श्रद्धालुओं को प्रसाद वितरण भी किया जाता है।
मानकेश्वरी देवी के बारे में
रायगढ़ जिला मुख्यालय से करीब 27 किमी दूर करमागढ़ में विराजित मां मानकेश्वरी देवी रायगढ़ राजघराने की कुल देवी हैं। इस दिन दोपहर बाद बलि पूजा शुरू होती है, जिसमें सैकड़ों श्रद्धालु शामिल होते हैं। पहले 150-200 बकरों की बलि दी जाती थी, लेकिन कोविड-19 महामारी के बाद संख्या घटकर करीब 100 और इस बार 40 तक रह गई है।
निशा पूजा की परंपरा
बलि पूजा से एक रात पहले यानी 5 अक्टूबर को निशा पूजा संपन्न की गई। इस पूजा में राज परिवार से ढीली अंगूठी बैगा के अंगूठे में पहनाई जाती है, जो बलि पूजा के दौरान कस जाती है। इसे देवी का वास्तविक वास माना जाता है। पूजा के बाद श्रद्धालु बैगा के पैर धोते और सिर पर दूध डालकर पूजा करते हैं।
दूर-दूर से आते हैं श्रद्धालु
मां मानकेश्वरी देवी की मान्यता इतनी अधिक है कि रायगढ़ और ओडिशा समेत अन्य जिलों से भी श्रद्धालु यहां आते हैं। यहां लोग अपनी मनोकामना मांगते हैं और पूरी होने पर बकरा चढ़ाते हैं।
मंदिर की स्थापना और इतिहास
मंदिर की स्थापना राजा चक्रधर सिंह के परिवार ने की थी। युधिष्ठिर यादव बताते हैं कि पूर्वजों से सुनी कहानियों के अनुसार, अंग्रेज़ों ने राजा को बंदी बना लिया था, लेकिन देवी ने उन्हें मधुमक्खियों के माध्यम से बचाया। तब से यह पूजापाठ और बलि पूजा की परंपरा चली आ रही है।
शरद पूर्णिमा के दिन होने वाले बलि पूजा को देखने रायगढ़ के जोबरो, तमनार, गौरबहरी, हमीरपुर, लामदांड, कुरसलेंगा, भगोरा, मोहलाई, बरकछार, चाकाबहाल, अमलीदोड़ा और ओडिशा के सुंदरगढ़, सारंगढ़, विजयपुर, जुनवानी, बंगुरसिया जैसे कई गांवों के श्रद्धालु पहुंचते हैं।