भरोसे के सिंहासन पर बैठा ‘अहंकार का पहरेदार’

जनसम्पर्क विभाग अपने ही बनाए गए नियमों की उड़ा रहे धज्जियां
मनोज पाण्डेय
लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत उसकी जनता और जनता की सबसे बड़ी ताकत उसका सच बोलने वाला मीडिया है। लेकिन जब किसी सरकार के भीतर ही ऐसा पहरेदार खड़ा कर दिया जाए, जो सच की आवाज़ को कुचलने में ही गर्व महसूस करे, तब समझ लीजिए कि लोकतंत्र खतरे में है। आज छत्तीसगढ़ का जनसम्पर्क विभाग इसी गहरी बीमारी से जूझ रहा है।

डॉ. रवि मित्तल…! नाम में भले ही “मित्तल” हो, लेकिन कामकाज ऐसा कि मानो खुद को “अटल” समझ बैठे हों। जिस विभाग को पारदर्शिता का आईना होना चाहिए था, वहाँ अब मनमानी का साम्राज्य खड़ा कर दिया गया है। विज्ञापन बाँटना अब पत्रकारिता को सम्मान देने का साधन नहीं, बल्कि चुनिंदा पोर्टलों की झोली भरने का हथकंडा बन चुका है। दस–दस साल से काम कर रहे अख़बार सूखे पड़े हैं, और चंद महीनों के “नवजात पोर्टल” सरकारी खजाने से लबालब हो रहे हैं।
सवाल उठता है – क्या मुख्यमंत्री विष्णु देव साय इस खेल से अनजान हैं? या फिर वे जानते हुए भी चुप हैं? जनता के मन में अब यही बेचैनी घर कर रही है कि जिस भरोसे के लिए डॉ. मित्तल को आगे लाया गया था, वही भरोसा आज अविश्वास में बदल चुका है। मुख्यमंत्री की छवि चमकनी चाहिए थी, लेकिन उसके माथे पर कालिख पोतने का काम मित्तल साहब कर रहे हैं।
लोकतंत्र की ताकत को कुचलने वाले इतिहास में कभी टिक नहीं पाए। पौराणिक कथाओं में भी जब–जब अहंकार सिर चढ़ा, उसका अंत नरसिंह अवतार के पंजों से हुआ। छत्तीसगढ़ की जनता आज यही पूछ रही है – “मुख्यमंत्री जी, आप कब नरसिंह बनकर इस अहंकार को तोड़ेंगे?”
पत्रकारिता कोई भीख नहीं माँग रही, वह सिर्फ सम्मान और समान अवसर चाहती है। अगर सरकार अपने ही भरोसेमंद सिपाही की मनमानी पर आँख मूँद लेगी तो कल यही आंखें जनता का विश्वास भी खो देंगी।
अब वक्त आ गया है कि मुख्यमंत्री फैसला लें – क्या वे लोकतंत्र की आवाज़ के साथ खड़े होंगे या फिर अहंकार के इस पहरेदार को सत्ता की चौखट पर मनमानी करने देंगे?उड़ा रहे धज्जियां