मीडिया की आवाज़ कुचलने पर अड़ा जनसम्पर्क विभाग! आखिर कब तक चुप रहेंगे मुख्यमंत्री?

रायपुर। छत्तीसगढ़ की सियासत में अब एक बड़ा तूफ़ान खड़ा हो चुका है। जनसम्पर्क विभाग की कार्यप्रणाली को लेकर पत्रकारों के बीच गुस्सा उबाल पर है और अब विपक्षी नेताओं व संगठनों ने भी खुलकर सरकार को घेरना शुरू कर दिया है। कांग्रेस नेताओं ने प्रदेश सरकार पर “मीडिया विरोधी रवैया अपनाने” का आरोप लगाते हुए कहा है कि जनसम्पर्क आयुक्त डॉ. रवि मित्तल की मनमानी न सिर्फ पत्रकारिता का गला घोंट रही है, बल्कि लोकतंत्र की बुनियाद को भी कमजोर कर रही है।

आरोप है कि विभाग निष्पक्ष विज्ञापन वितरण की जगह मनमानी कर रहा है और चुनिंदा मीडिया संस्थानों को ही लाभ पहुँचा रहा है। इससे छोटे- मझोले अखबारों और पोर्टलों का अस्तित्व संकट में है। इस बारे में मुख्यमंत्री तक भी शिकायतें पहुँच चुकी हैं। बावजूद इसके अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। यही कारण है कि पत्रकार संगठन लामबंद होकर आंदोलन की तैयारी कर रहे हैं और विपक्ष इसे “लोकतंत्र पर हमला” बता रहा है।
मीडिया पर अंकुश उचित नहीं

दीपक बैज, अध्यक्ष – कांग्रेस (छत्तीसगढ़):
“मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है। अगर उसी पर अंकुश लगाने की कोशिश होगी तो यह सीधे–सीधे जनता की आवाज़ दबाने जैसा है। डॉ. मित्तल की कार्यशैली मीडिया विरोधी है और सरकार को तुरंत हस्तक्षेप करना चाहिए।”
संतोष मार्कंड, प्रदेश महासचिव – कामगार सेना:
“छोटे–बड़े सभी अख़बार और पोर्टल मेहनत से पत्रकारिता कर रहे हैं। लेकिन विभाग पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाकर चुनिंदा मीडिया संस्थानों को ही विज्ञापन दे रहा है। यह खुली नाइंसाफी है। अगर हालात नहीं सुधरे तो कामगार संगठनों के साथ मिलकर बड़ा आंदोलन होगा।”
अजय गंगवानी, प्रवक्ता – कांग्रेस (छत्तीसगढ़):
“सरकार पत्रकारों की आवाज़ दबाना चाहती है। मीडिया को दबाकर कोई सरकार लंबे समय तक जनता का भरोसा नहीं जीत सकती। मुख्यमंत्री को चाहिए कि तुरंत हस्तक्षेप करें और जनसम्पर्क विभाग की मनमानी पर रोक लगाएँ।”