
केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की कहानी भारतीय पुराणों और महाभारत से जुड़ी हुई है। यह कथा न केवल भगवान शिव की महिमा को दर्शाती है, बल्कि पांडवों की भक्ति और प्रायश्चित की भावना को भी उजागर करती है।

महाभारत के युद्ध के बाद पांडवों को यह बोध हुआ कि उन्होंने अपने ही संबंधियों और ब्राह्मणों की हत्या की है, जो कि एक महान पाप है। इस पाप से मुक्ति पाने के लिए उन्होंने भगवान शिव की शरण लेने का निश्चय किया।
पांडवों ने शिवजी की तपस्या प्रारंभ की और उन्हें प्रसन्न करने के लिए हिमालय की ओर प्रस्थान किया। लेकिन शिव जी, पांडवों से रुष्ट थे और उनका सामना नहीं करना चाहते थे। अतः वे गुप्तकाशी चले गए और फिर केदार क्षेत्र में जा छिपे। यहाँ उन्होंने एक बैल (नंदी) का रूप धारण कर लिया

Kedarnath Jyotirling : बैल के पीठ रूप में दर्शन
जिस स्थान पर भगवान शिव ने बैल के पीठ रूप में दर्शन दिए, वही स्थान आज केदारनाथ ज्योतिर्लिंग कहलाता है
Kedarnath Jyotirling : द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक
केदारनाथ ज्योतिर्लिंग को द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है।
यह स्थान केवल एक तीर्थ नहीं, बल्कि भक्ति, तपस्या और मोक्ष का प्रतीक है।
Kedarnath Jyotirling : यहाँ की यात्रा कठिन है
यहाँ की यात्रा कठिन है, लेकिन श्रद्धा और भक्ति से ओतप्रोत होती है