अग्रसेन महाविद्यालय में एफडीपी का चौथा दिन–
“शोध की प्रकृति से तय होती है डाटा एनालिसिस की विधि”
( PUBLISHED BY – SEEMA UPADHYAY )
रायपुर. अग्रसेन महाविद्यालय में पांच-दिवसीय फेकल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम के चौथे दिन आज आमंत्रित विशेषज्ञों ने शोध के लिए डाटा एनालिसिस की विभिन्न विधियों के महत्व और आवश्यकता पर प्रकाश डाला. आमंत्रित वक्ताओं ने कहा कि डाटा एनालिसिस के लिए विधि का चुनाव, शोध की प्रकृति के अनुसार तय किया जाता है.
आज के पहले सत्र में पं. रविशंकर शुक्ल विवि में सांख्यिकी के प्राध्यापक डॉ. प्रदीप चौरसिया ने डाटा एनालिसिस करते समय पैरामीट्रिक तकनीक की उपयोगिता पर विस्तार से चर्चा की. उन्होंने बताया कि पैरामीट्रिक विधियाँ मॉडल बनाने के लिए निश्चित संख्या में मापदंडों का उपयोग करती हैं. उन्होंने कहा कि जिस सांख्यिकीय परीक्षण में जनसंख्या पैरामीटर के बारे में विशिष्ट धारणाएं बनाई जाती हैं, उसे ही पैरामीट्रिक परीक्षण विधि के रूप में जाना जाता है. उन्होंने डाटा एनालिसिस के लिए काम में आने वाले सोफ्टवेयर एस.पी.एस.एस. से सम्बंधित तकनीकी जानकारी भी दी. आज की प्रस्तुति के बाद डॉ चौरसिया कल इस सोफ्टवेयर का व्यावहारिक प्रयोग कम्प्यूटर पर स्वयं करके भी प्रतिभागियों को बताएँगे, ताकि विभिन्न प्रकार के डाट एनालिसिस को प्राप्त करने की विधि समझी जा सके.
आज पहले सत्र में डॉ ए.के. श्रीवास्तव ने अधिकृत प्रकाशन स्रोतों के विषय पर अपना व्याख्यान दिया. उन्होंने बताया कि यूजीसी द्वारा अनुमोदित शोध पत्रिकाओं और जर्नल में ही अपना शोध पत्र प्रकाशित करने से इसकी विश्वसनीयता और भी ज्यादा बढ़ जाती है. उन्होंने अधिक इम्पैक्ट फैक्टर वाले रिसर्च जर्नल तथा अंतरराष्ट्रीय रिसर्च जर्नल में भी अपने शोध पत्रों के प्रकाशन पर जोर दिया.
कार्यक्रम के दूसरे सत्र में पं. रविशंकर शुक्ल विवि में शारीरिक शिक्षा और विधि संकाय के विभागाध्यक्ष डॉ राजीव चौधरी ने डाटा एनालिसिस में नॉन-पैरामीट्रिक तकनीक की उपयोगिता पर विस्तार से प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि नॉन-पैरामीट्रिक विधि का मॉडल बनाने के लिए लचीले मापदंडों की संख्या का उपयोग किया जाता है. उन्होंने कहा कि नॉन-पैरामीट्रिक विधियों के लिए पैरामीट्रिक विधियों की तुलना में बहुत अधिक डेटा की आवश्यकता होती है. उन्होंने कहा कि नॉन-पैरामीट्रिक विधियों का व्यापक उपयोग उन आबादी के अध्ययन में किया जाता है, जो एक क्रमबद्ध आधार पर उपलब्ध होते हैं. डॉ चौधरी ने कहा कि नॉन-पैरामीट्रिक विधियों का उपयोग तब आवश्यक हो सकता है जब डाटा की रैंकिंग हो लेकिन उसकी कोई स्पष्ट संख्यात्मक व्याख्या न हो. उन्होंने आंकड़ों के अधर पर विभिन्न नार्मेलिटी के लिए आवश्यक विभिन्न टेस्ट को भी व्यावहारिक रूप से प्रस्तुत करके प्रतिभागियों को इन सभी टेस्ट की उपयोगिता के बारे में बताया.
इससे पहले स्वागत भाषण में डॉ वीके अग्रवाल ने कहा कि शोध की बारीकियों को जानने के इस प्रयास में शिक्षकों और शोधार्थियों को निश्चित रूप से लाभ होगा. कार्यक्रम के अंत में आभार व्यक्त करते हुए प्राचार्य डॉ युलेन्द्र कुमार राजपूत ने कहा कि चार दिनों सभी सत्रों में हर दिन विशेषज्ञ वक्ताओं ने बहुत ही महत्वपूर्ण बिंदुओं की जानकारी दी है, जो सभी के लिए उपयोगी साबित होगी. महाविद्यालय के एडमिनिस्ट्रेटर प्रो. अमित अग्रवाल ने आमंत्रित वक्ताओं की प्रस्तुति के लिए उन्हें साधुवाद दिया. पांच दिनों के इस कार्यक्रम के अंतिम दिन विशेषज्ञ के रूप में डॉ प्रदीप चौरसिया द्वारा एसपीएसएस सॉफ्टवेयर के प्रायोगिक उपयोग तथा डॉ दिव्या शर्मा द्वारा शोध पत्र के प्रकाशन से जुडी जानकारी दी जाएगी. इसके बाद समापन समारोह होगा, जिसमें मुख्य अतिथि पंडित रविशंकर शुक्ल विवि के कुलपति डॉ केसरीलाल वर्मा होंगे तथा विशेष अतिथि शिक्षाविद डॉ मधुलिका अग्रवाल होंगी। समारोह में सभी सभी प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र दिए जायेंगे.