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किसानों के हक़ में सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक आदेश – मुआवज़े में देरी पर ‘विशेष क्षतिपूर्ति’ का हक़

– कहा, हाईकोर्ट द्वारा जनहित याचिका खारिज करना ‘दुर्भाग्यपूर्ण’

– प्राधिकरण की नियुक्ति में हुई देरी पर सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणी

नई दिल्ली/रायपुर। किसानों के हित में सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक आदेश जारी किया है। अदालत ने कहा कि छत्तीसगढ़ में भूमिअधिग्रहण प्राधिकरण की नियुक्ति में हुई लंबी देरी के चलते प्रभावित किसानों और भूमिधारकों को केवल मूल मुआवज़े ही नहीं, बल्कि विशेष क्षतिपूर्ति का भी अधिकार है।
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की डिवीजन बेंच ने राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि – “एक किसान को भूमिअधिग्रहण प्राधिकरण में पीठासीन अधिकारी की नियुक्ति जैसी बुनियादी व्यवस्था के लिए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाना पड़ा। यह दुर्भाग्यपूर्ण है।”

मामला कैसे शुरू हुआ?
अगस्त 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ सरकार को दो माह के भीतर भूमि-अधिग्रहण प्राधिकरण गठित करने का निर्देश दिया था।
सारंगढ़-बिलाईगढ़ निवासी किसान बाबूलाल ने इस मामले को लेकर हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी, जिसे खारिज कर दिया गया।
बाबूलाल ने अपने वकील अभिनव श्रीवास्तव के जरिए सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (SLP) दायर की।
याचिका में कहा गया कि प्राधिकरण न बनने से किसानों की मुआवज़ा और ब्याज से जुड़ी सैकड़ों अर्जियां वर्षों से लंबित हैं।

सुप्रीम कोर्ट की सख़्त टिप्पणी

  • अदालत ने माना कि हाईकोर्ट द्वारा जनहित याचिका खारिज करना “दुर्भाग्यपूर्ण” था।
  • आदेश में कहा गया कि राज्य सरकार की लंबी लापरवाही ने किसानों को न्याय से वंचित रखा।
  • न्यायालय ने स्पष्ट किया कि सभी प्रभावित किसान अपने दावे प्रस्तुत कर सकेंगे, और प्राधिकरण उन्हें मुआवज़े में वृद्धि के साथ विशेष क्षतिपूर्ति पर भी विचार करेगा।

अब आगे क्या?

  • हाल ही में सेवानिवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश हीरेंद्र सिंह टेकाम को प्राधिकरण का पीठासीन अधिकारी नियुक्त किया गया है।
  • सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि टेकाम अब देरी की अवधि के लिए विशेष मुआवज़े पर किसानों के दावों की सुनवाई करेंगे।

क्यों है यह फैसला अहम?

  • 2018 के नए भूमि अधिग्रहण कानून में तय है कि अधिसूचना के बाद एक वर्ष के भीतर मुआवज़े और विवादों का निपटारा होना चाहिए।
  • लेकिन छत्तीसगढ़ में दिसंबर 2023 से प्राधिकरण का गठन ही नहीं हुआ था।
  • नतीजतन, सैकड़ों किसान वर्षों से मुआवज़े के इंतज़ार में थे।
  • इस आदेश को विशेषज्ञ किसान हित और भूमिधारकों के लिए एक “ऐतिहासिक जीत” मान रहे हैं।

किसान बाबूलाल के लिए एडवोकेट अभिनव श्रीवास्तव ने की पैरवी
छत्तीसगढ़ के सारंगढ़-बिलाईगढ़ के किसान बाबूलाल द्वारा दायर याचिका में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक आदेश सुनाया है। याचिका का मुख्य मुद्दा भूमि-अधिग्रहण प्राधिकरण का गठन न होना और मुआवज़े में लंबी देरी थी। मामले की पैरवी वरिष्ठ अधिवक्ता अभिनव श्रीवास्तव ने सुप्रीम कोर्ट में की। न्यायालय ने किसानों के पक्ष में फैसला सुनाते हुए न केवल मुआवज़ा जारी करने का निर्देश दिया, बल्कि देरी के लिए विशेष क्षतिपूर्ति भी प्रदान करने का आदेश दिया। यह आदेश किसानों के अधिकारों की रक्षा और मुआवज़ा प्रक्रिया में समयबद्धता सुनिश्चित करने की दिशा में महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

Buland Hindustan

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