
भारतीय राजनीति में वंशवाद की जड़ें कितनी गहरी हैं, इसे एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) और नेशनल इलेक्शन वॉच (एनईडब्ल्यू) की ताज़ा रिपोर्ट ने उजागर किया है। रिपोर्ट के अनुसार मौजूदा 5,204 सांसदों, विधायकों और विधान परिषद सदस्यों में से 1,107 (21%) नेता वंशवादी पृष्ठभूमि रखते हैं।
लोकसभा में यह आंकड़ा सबसे ज्यादा 31% है। कांग्रेस में 32% नेता परिवारवाद से आते हैं, जबकि भाजपा में यह संख्या 18% और सीपीआई(एम) में 8% है।
राज्यों में वंशवाद
उत्तर प्रदेश: 604 जनप्रतिनिधियों में से 141 (23%) वंशवादी
महाराष्ट्र: 129 (32%)
बिहार: 96 (27%)
कर्नाटक: 94 (29%)
आंध्र प्रदेश: 86 (34%) – अनुपात में सबसे आगे
असम में यह आंकड़ा मात्र 9% है।
दलों में स्थिति
राज्य स्तरीय दलों में एनसीपी (शरद पवार गुट) और नेशनल कॉन्फ्रेंस 42% के साथ सबसे ऊपर हैं। वाईएसआर कांग्रेस (38%) और टीडीपी (36%) में भी वंशवाद हावी है। वहीं तृणमूल कांग्रेस (10%) और एआईएडीएमके (4%) में यह बेहद कम है।
महिला नेताओं में वंशवाद
महिला सांसदों और विधायकों में 47% वंशवादी हैं, जबकि पुरुषों में यह आंकड़ा 18% है। महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और बिहार में यह 60-70% तक पहुंच जाता है।
समाधान के सुझाव
रिपोर्ट ने वंशवाद पर अंकुश लगाने के लिए राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र, पारदर्शिता, टिकट वितरण में सुधार, चुनाव खर्च पर नियंत्रण और महिलाओं को योग्यता के आधार पर प्रतिनिधित्व देने जैसे उपाय सुझाए हैं।