
लखनऊ: सरकार द्वारा किफायती दरों पर एंटीबायोटिक दवाएं उपलब्ध कराने के लिए राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (NPPA) और जन औषधि केंद्रों की व्यवस्था होने के बावजूद बाजार में दवाओं की कीमतों पर मनमानी जारी है। एक ही फॉर्मूले की एंटीबायोटिक दवाएं बाजार में 14 गुना तक ज्यादा कीमत पर बिक रही हैं। इसका खुलासा इंडियन जर्नल ऑफ फिजियोलॉजी एंड फार्माकोलॉजी में अगस्त 2025 में प्रकाशित केजीएमयू के अध्ययन में हुआ है।
जनवरी-फरवरी 2025 के बीच हुआ अध्ययन
अध्ययन जनवरी से फरवरी 2025 के बीच किया गया। इसमें 15 प्रमुख एंटीबायोटिक दवाओं की कीमतों का विश्लेषण किया गया। इनकी तुलना NPPA और जन औषधि की 2024 की मूल्य सूची से की गई। इसमें पाया गया कि बाजार की कीमतें सरकारी सूची से कई गुना अधिक थीं। ओफ्लॉक्सासिन 400 मिलीग्राम की बाजार कीमत तो 14.73 गुना तक ज्यादा पाई गई। अध्ययन में यह भी सामने आया कि जन औषधि केंद्रों पर मिलने वाली दवाएं बाजार और यहां तक कि NPPA की मूल्य सूची की तुलना में भी सबसे सस्ती हैं।
क्यों बढ़ती हैं दवाओं की कीमतें
दवा व्यापारी सौरभ त्रिपाठी के अनुसार, दवाओं की कीमतों पर नियंत्रण के लिए आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय सूची (NLEM) मौजूद है। लेकिन कंपनियां अक्सर दवाओं में अतिरिक्त साल्ट जोड़कर उन्हें इस सूची से बाहर कर देती हैं। जब तक दवा NLEM में शामिल नहीं होती, तब तक मनमानी कीमतें वसूली जाती हैं। अध्ययन करने वाली टीम में डॉ. वर्तिका श्री, डॉ. आयुष जैन, डॉ. दीक्षा गुप्ता, डॉ. शकील अहमद और डॉ. सुयोग सिंधु शामिल रहे।
शामिल एंटीबायोटिक दवाएं
एमोक्सिसिलिन 500, एजिथ्रोमाइसिन 250, एजिथ्रोमाइसिन 500, सेफैड्रोक्सिल 500, सेफिक्सिम 200, सेफ्पोडोक्सिम 200, सेफुरोक्साइम 500, सेफैलेक्सिन 500, सिप्रोफ्लोक्सासिन 250, सिप्रोफ्लोक्सासिन 500, डॉक्सीसाइक्लिन 100, लेवोफ्लोक्सासिन 500, मोक्सीफ्लोक्सासिन 400, नॉरफ्लोक्सासिन 400, ओफ्लॉक्सासिन 400।
विशेषज्ञ की राय
“सरकार को दवाओं की कीमतों पर नियंत्रण के लिए सख्त कानून बनाने होंगे। इनके दुरुपयोग पर कड़ी कार्रवाई जरूरी है। तभी जरूरतमंदों को सस्ती और जरूरी दवाएं मिल पाएंगी।” प्रो. संतोष कुमार, महामंत्री, केजीएमयू शिक्षक संघ