अग्रसेन महाविद्यालय के छात्रों ने किया भोरमदेव के ऐतिहासिक मंदिर का भ्रमण…
इस मंदिर को 11वीं शताब्दी में नागवंशी राजा गोपाल देव ने बनवाया था। ऐसा कहा जाता है कि गोड राजाओं के देवता भोरमदेव थे एवं वे भगवान शिव के उपासक थे।
छत्तीसगढ़ के कवर्धा जिले में स्थित एक ऐतिहासिक मंदिर भोरमदेव की एक झलक पा लेना ही इंसान के लिए बड़े सौभाग्य की बात होती है. भोरमदेव मंदिर छत्तीसगढ के कबीरधाम जिले से 18 कि॰मी॰ दूर तथा रायपुर से 125 कि॰मी॰ दूर चौरागाँव में एक हजार वर्ष पुराना मंदिर है।
कैसे पड़ा नाम भोरमदेव ?
मंदिर के चारो ओर मैकल पर्वतसमूह है जिनके मध्य हरी भरी घाटी में यह मंदिर है। मंदिर के सामने एक सुंदर तालाब भी है। इस मंदिर की बनावट खजुराहो तथा कोणार्क के मंदिर के समान है जिसके कारण लोग इस मंदिर को ‘छत्तीसगढ का खजुराहो’ भी कहते हैं। यह मंदिर एक एतिहासिक मंदिर है। इस मंदिर को 11वीं शताब्दी में नागवंशी राजा गोपाल देव ने बनवाया था। ऐसा कहा जाता है कि गोड राजाओं के देवता भोरमदेव थे एवं वे भगवान शिव के उपासक थे। भोरमदेव , शिवजी का ही एक नाम है, जिसके कारण इस मंदिर का नाम भोरमदेव पडा।
अग्रसेन महाविद्यलय के छात्रों ने किया शैक्षणिक भ्रमण
इस ऐतिहासिक मंदिर को देखने और इसके इतिहास से रूबरू होने के लिए अग्रसेन महाविद्यालय के पत्रकारिता विभाग के टीचर्स ने एक शैक्षणिक भ्रमण के कार्यक्रम का आयोजन किया। इस भ्रमण को और भी सहायता अग्रसेन महाविद्यलय के योग विभाग से प्राप्त हुई, जिससे ये भ्रमण और भी यादगार बन गया. ये भ्रमण 19 नवंबर 2022 को आयोजित किया गया था. एक दिवसीय के इस शैक्षणिक भ्रमण को लेकर छात्रों में भी काफी उत्साह देखने को मिला। सभी छात्र – छात्राओं ने बढ़ चढ़कर इस भ्रमण में हिस्सा लिया और इस भ्रमण को यादगार बनाया।
इस आयोजन की पूरी जिम्मेदारी पत्रकारिता विभाग के प्रोफेसर राहुल तिवारी, प्रोफेसर हेमंत सहगल ने उठायी। इसी श्रेणी में पत्रकारिता विभाग के HOD विभाष कुमार झा के साथ साथ योग डिपार्टमेंट की प्रोफेसर ममता यादव और पत्रकारिता विभाग के सभी छात्रों और योग विभाग के सभी छात्रों ने मिलकर इस आयोजन में पूरा सहयोग देकर इसे सफल बनाया।